मन की एकाग्रता: सफलता के लिए ध्यान और समर्पण का महत्व - Concentration of Mind: The Importance of Focus and Dedication for Success

मन की एकाग्रता: सफलता के लिए ध्यान और समर्पण का महत्व

  1. मन की एकाग्रता
  2. सफलता के लिए ध्यान
  3. एकाग्रता का महत्व
  4. कामयाबी और एकाग्रता
  5. ध्यान और एकाग्रता से सफलता
  6. एकाग्रता और जीवन में सफलता
  7. एकाग्रचित्तता की भूमिका
  8. सफलता के लिए ध्यान केंद्रित करना
  9. एकाग्रता से लक्ष्य प्राप्ति
  10. मन की शांति और एकाग्रता

जल्दबाजी में किया गया कार्य कभी भी सफलता नहीं दिलाता, एकाग्रता से ही कामयाबी मिलती है।

एक दिन वीरू और बसन्ती जब घर से घूमने के लिए जाने लगे, तो बसन्ती ने वीरू से कहा कि आज कार मैं चलाऊंगी। वीरू ने कहा- "फिर तो हम जायेंगे कार में और आएंगे अखबार में।" वीरू ने बसन्ती को समझाते हुए कहा कि कार चलाना इतना आसान नहीं जितना कि तुम सोच रही हो। कार चलाते समय आदमी को अपने आगे-पीछे और दायें-बायें चारों तरफ पूरा ध्यान रखना होता है। दोनों हाथों के साथ पैरों से भी कई चीजें कंट्रोल करनी पड़ती है। कार चलाना कोई दाल-सब्जी बनाने जैसा नहीं है, इसमें बहुत एकाग्रता की जरूरत होती है।

वीरू का यह भाषण सुनते ही बसन्ती ने कहा कि "मेरी किस्मत तो उसी दिन फूट गई थी जब मैंने तुमसे बिना देखे ही शादी की थी।" माहौल को गंभीर होने से बचाने के लिए वीरू ने मजाक करते हुए अपनी पत्नी से कहा कि तुम मेरी हिम्मत देखो, मैंने तो तुम्हें देख कर भी तुमसे शादी कर ली।

कुछ ही देर में यह नोक-झोंक इतनी बढ़ गई कि वीरू अपनी पत्नी को बिना कुछ भी कहे गुस्सा करते हुए घर से बाहर चला गया। देर रात उसने अपने मोबाइल से फोन मिलाकर पूछा कि तुम कौन? बसन्ती ने कहा कि तुम पागल हो गए हो क्या, अपनी पत्नी को भूल गए हो? वीरू ने कहा कि जब दिमाग में परेशानी हो तो कुछ समझ ही नहीं आता कि आदमी को क्या बोलना और क्या नहीं बोलना चाहिए। बसन्ती ने गुस्सा करते हुए कहा कि फालतू की बातें छोड़ो और यह बताओ कि इस समय फोन क्यों किया है? वीरू ने जवाब दिया कि मैंने सोचा एक कॉल ही कर लूं, हो सकता है कि शायद तुम मुझे मिस कर रही होगी।

बसन्ती ने कहा- अब इतनी हमदर्दी आ रही है और अभी थोड़ी देर पहले जो मुझसे इतना झगड़ा करके गए हो, वो सब क्या था? वीरू ने माथे पर हाथ मारते हुए कहा कि "ओये फिट्टे मुंह फिर से घर का नंबर मिल गया।"

अब यदि यह कहा जाये कि यह सब कुछ सिर्फ पति-पत्नी के झगड़े का नतीजा है तो गलत होगा। आज के इस दौर में जन्म, मृत्यु, कष्ट, बीमारियों को छोड़कर बाकी सभी दुःख हमारी अपनी मनोदशा यानी एकाग्रता के अभाव के कारण होते हैं। असल में आज का समय ही एकाग्रता में कमी का युग है। अधिक से अधिक धन कमाने और सुख पाने की लालसा ने हर व्यक्ति को दिशाहीन बना दिया है। आज अधिकांश लोग बिना सोचे-विचारे, कोई लक्ष्य तय किये ही जीवन जी रहे हैं।

इस तरह के लोगों को फिर यही सुनने को मिलता है कि तुम कोई भी रास्ता पकड़ लो, तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इस बात की गहराई को समझा जाये तो एक बात खुल कर सामने आती है कि जब तुम्हें मालूम ही नहीं कि तुम्हें जाना कहां है, तो फिर कोई भी रास्ता पकड़ लो वो तुम्हें कहीं न कहीं तो ले ही जायेगा।

रेलगाड़ी में भी सफर के दौरान आपने कई बार जरूर देखा होगा कि दो किस्म के लोग सफर कर रहे होते हैं, जिन्हें अपनी मंजिल का पता नहीं होता। उनमें से एक होता है संन्यासी साधु और दूसरा भिखारी। इस प्रवृत्ति के लोग अनेक प्रकार के विचारों में उलझे होने के कारण अपने आप को एकाग्र नहीं कर पाते।

जो लोग एक बार ध्यान से काम करने का अभ्यास बना लेते हैं, फिर चाहे उनके आसपास कितनी ही घटनाएं क्यों न होती रहें, कोई उनकी तारीफ या आलोचना क्यों न करे, वे अपनी परवाह नहीं करते और अपने ही काम में रमे रहते हैं।

हमारी जिंदगी में एकाग्रता का महत्व इसलिये भी अधिक है क्योंकि जब तक हम एकाग्रचित्त होकर कोई काम नहीं करते, उसके बिना सभी बातें व्यर्थ होती हैं। जीवन में हार-जीत या सफलता-असफलता की बात हो, हर जगह फर्क सिर्फ एक हल्की-सी रेखा का ही होता है और उस रेखा का नाम है एकाग्रता।

अब यदि वीरू और बसन्ती के झगड़े की बात की जाये तो वीरू की बात में सच्चाई छिपी हुई है, परंतु उसके बात कहने के तरीके को सही नहीं कहा जा सकता। वीरू चाहता तो बसन्ती को इस तरह से भी कह सकता था कि किसी भी कार्य में सफल होने के लिए हमें सौ प्रतिशत लगना पड़ता है।

वैसे भी एकाग्र मन से कार्य करने के कई फायदे होते हैं। इससे हमारे मन में शक्ति उत्पन्न होने के साथ हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है और हम और अधिक साहस से आगे कार्य करने के लिए तैयार हो जाते हैं। अपनी पत्नी को समझाते हुए वीरू को भी यह समझना चाहिए कि अपने मार्ग में आने वाले किसी भी विघ्न से घबराना नहीं चाहिए, हर विघ्न को उन्नति की ओर ले जाने वाली सीढ़ी समझें।

यदि मन में दृढ़ निश्चय और विश्वास है, तो विजय निश्चित रूप से मिलती है, और यदि संकल्प कमजोर है तो पराजय होगी। वीरू बसन्ती की बातों से ध्यान हटा कर अपने मन को एकाग्र करते हुए इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि बिखरे-बिखरे विचारों वाले व्यक्ति कभी शांत नहीं रह सकते और मन की शांति के बिना खुशी संभव नहीं है।

अब यदि आपको मानसिक शांति का आनंद प्राप्त करना है तो कभी भी मन को व्यर्थ की उलझनों में फंसने की बजाए सदैव एकाग्रचित्त रखे।

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