गुरु पूर्णिमा पर संत कबीर के अनमोल विचार
गुरु पूर्णिमा एक ऐसा पर्व है जो हमारे जीवन में गुरु के महत्व और उनकी शिक्षाओं को याद करने का अवसर प्रदान करता है। संत कबीरदास जी ने गुरु की महिमा को अद्वितीय रूप से व्यक्त किया है। उनके दोहे और विचार हमें गुरु के प्रति श्रद्धा और आदरभाव का मार्ग दिखाते हैं। आइए गुरु पूर्णिमा के इस शुभ अवसर पर संत कबीरदास के कुछ अमूल्य विचारों को जानें और उनसे प्रेरणा लें।

1. गुरु की महिमा भगवान से भी ऊपर
दोहा:
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥
भावार्थ:
गुरु हमें ईश्वर तक पहुंचाने का मार्ग दिखाते हैं। उनके बिना हमें ईश्वर का साक्षात्कार संभव नहीं होता। इसलिए गुरु का स्थान भगवान से भी ऊंचा है।
2. गुरु अमृत की खान
दोहा:
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान॥
भावार्थ:
यह जीवन कई दोषों और विष से भरा हुआ है, लेकिन गुरु ज्ञान का अमृत हैं। अगर गुरु पाने के लिए अपना सर्वस्व भी अर्पित करना पड़े, तो भी यह सौदा सस्ता है।
3. गुरु के गुणों का वर्णन असंभव
दोहा:
सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए॥
भावार्थ:
गुरु के गुण इतने महान हैं कि पूरी धरती को कागज, सभी पेड़ों को कलम, और सात समुद्रों को स्याही बना लिया जाए, फिर भी उनका वर्णन करना असंभव है।
4. अहंकार के बिना गुरु का मार्ग
दोहा:
जब मैं था तब गुरु नहीं, अब गुरु है मैं नाहिं।
प्रेम गली अति सांकरी, तामें दो न समांही॥
भावार्थ:
गुरु का ज्ञान प्राप्त करने के लिए अहंकार का त्याग करना जरूरी है। प्रेम और गुरु की गली इतनी संकरी है कि इसमें अहंकार के साथ प्रवेश संभव नहीं है।
5. गुरु की शरण से ही कल्याण
दोहा:
गुरु शरणगति छाडि के, करै भरोसा और।
सुख संपती को कह चली, नहीं नरक में ठौर॥
भावार्थ:
जो व्यक्ति गुरु की शरण छोड़कर दूसरों पर निर्भर रहता है, वह न तो सुख प्राप्त कर सकता है और न ही नरक से मुक्ति पा सकता है।
6. भक्ति का मार्ग गुरु से ही संभव
दोहा:
भक्ति पदारथ तब मिले, जब गुरु होय सहाय।
प्रेम प्रीति की भक्ति जो, पूरण भाग मिलाय॥
भावार्थ:
भक्ति रूपी अनमोल खजाना तभी मिलता है, जब गुरु का मार्गदर्शन प्राप्त हो। गुरु की कृपा के बिना भक्ति असंभव है।
7. गुरु सबसे बड़े दाता
दोहा:
गुरु समान दाता नहीं, याचक सीष समान।
तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दिन्ही दान॥
भावार्थ:
गुरु से बड़ा कोई दाता नहीं। गुरु अपने शिष्यों को तीनों लोकों की संपदा, अर्थात अमूल्य ज्ञान, प्रदान करते हैं।
8. गुरु का आशीर्वाद सर्वोपरि
दोहा:
कबीर हरि के रुठते, गुरु के शरणै जाय।
कहै कबीर गुरु रुठते, हरि नहि होत सहाय॥
भावार्थ:
यदि ईश्वर नाराज हों तो गुरु की शरण में जाकर उन्हें मना सकते हैं, लेकिन अगर गुरु नाराज हो जाएं, तो भगवान भी सहायता नहीं कर सकते।
9. ज्ञान से अज्ञान का नाश
दोहा:
तिमिर गया रवि देखते, कुमति गयी गुरु ज्ञान।
सुमति गयी अति लोभते, भक्ति गयी अभिमान॥
भावार्थ:
सूर्य के प्रकाश से अंधकार खत्म हो जाता है, वैसे ही गुरु के ज्ञान से कुबुद्धि का नाश होता है। लेकिन लोभ और अभिमान से सुमति और भक्ति खत्म हो जाती है।
10. गुरु को स्वीकार करने का महत्व
दोहा:
कबीर गुरु सबको चहै, गुरु को चहै न कोय।
जब लग आश शरीर की, तब लग दास न होय॥
भावार्थ:
गुरु सभी को स्वीकार करते हैं, लेकिन अज्ञानी लोग गुरु को स्वीकार नहीं करते। जब तक मोह और माया का त्याग नहीं होता, तब तक सच्चा शिष्य बन पाना संभव नहीं।
गुरु की महिमा पर निष्कर्ष
गुरु हमारे जीवन के दीपक हैं। वे हमारे अज्ञान के अंधकार को दूर कर हमें ज्ञान का प्रकाश देते हैं। गुरु पूर्णिमा पर संत कबीरदास जी के इन विचारों को आत्मसात करें और अपने जीवन को सार्थक बनाएं।
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