डॉ. राजेन्द्र प्रसाद: भारत के प्रथम राष्ट्रपति की प्रेरणादायक जीवनी - Dr. Rajendra Prasad: An Inspirational Biography of the First President of India

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद: भारत के प्रथम राष्ट्रपति की प्रेरणादायक जीवनी


प्रस्तावना

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, भारत के पहले राष्ट्रपति, एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिनकी जीवन यात्रा प्रेरणा से भरी हुई है। उनकी विलक्षण क्षमताओं और राष्ट्र के प्रति समर्पण ने उन्हें भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। इस ब्लॉग में हम उनके जीवन की प्रमुख घटनाओं और उपलब्धियों पर एक दृष्टि डालेंगे।


जन्म और प्रारंभिक जीवन

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म 3 दिसम्बर 1884 को बिहार के जीरादेयू गांव में हुआ। एक बड़े संयुक्त परिवार में सबसे छोटे सदस्य के रूप में जन्मे राजेन्द्र प्रसाद को उनके परिवार और गांव के लोगों का पूरा प्यार मिला। उनके बचपन की यादें हिन्दू और मुसलमान दोस्तों के साथ खेलों और त्योहारों में शामिल रहने की हैं। उनका परिवार ईश्वर पर पूर्ण विश्वास रखता था, और उनकी मां अक्सर उन्हें रामायण की कहानियां सुनाती थीं। इन अनुभवों ने उनके चरित्र को दृढ़ और उदार दृष्टिकोण प्रदान किया।

विवाह और पारिवारिक जीवन

राजेन्द्र प्रसाद का विवाह बारह वर्ष की आयु में हुआ था, जो उस समय की परंपरा थी। विवाह की रस्में एक विस्तृत अनुष्ठान के रूप में आयोजित की गईं, जिसमें हाथी के बिना ही जुलूस की शुरुआत हुई थी। विवाह के पहले पचास वर्षों में, राजेन्द्र प्रसाद और उनकी पत्नी बहुत कम समय एक साथ बिता सके, क्योंकि राजेन्द्र प्रसाद ने राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया और अपने पारिवारिक जीवन को छोड़ दिया।

मातृभूमि के प्रति समर्पण

राजेन्द्र प्रसाद एक प्रतिभाशाली वकील थे, और उनका भविष्य एक सुंदर सपना था। लेकिन राष्ट्रीय नेता गोखले के शब्दों ने उन्हें प्रभावित किया और उन्होंने अपने परिवार की इच्छाओं को छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने का निर्णय लिया। उनका मानना था कि मातृभूमि की स्वतंत्रता की ओर उनका योगदान अधिक महत्वपूर्ण है। राजेन्द्र प्रसाद ने अपने परिवार को समर्थन देने का वचन देते हुए अपनी आत्मा की पुकार को सुना और राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय हो गए।

इंग्लैंड जाने का सपना और छात्र जीवन

राजेन्द्र प्रसाद का इंग्लैंड जाने का सपना था ताकि वे आई.सी.एस. परीक्षा दे सकें। लेकिन परिवार की आपत्ति के कारण उन्होंने यह सपना छोड़ दिया। उनका छात्र जीवन परिश्रम और संजीदगी से भरा था। कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त कर उन्होंने बिहार का नाम रोशन किया। प्रेसीडेंसी कॉलेज में उन्होंने कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन आत्मविश्वास और परिश्रम ने उन्हें सफल बनाया।

स्वदेशी आंदोलन और क़ानून में शिक्षा

राजेन्द्र प्रसाद ने स्वदेशी आंदोलन में भाग लिया और विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया। उन्होंने क़ानून में मास्टर डिग्री और डॉक्टरेट प्राप्त की और एक सम्मानित वकील बने। उनकी प्रसिद्धि और सम्मान ने उन्हें भारतीय कांग्रेस कमेटी का सदस्य बनने में मदद की।

चम्पारन और ब्रिटिश दमन

सन् 1917 में, राजेन्द्र प्रसाद ने महात्मा गांधी के साथ चम्पारन के कृषकों की दशा सुधारने के लिए काम किया। गांधीजी ने राजेन्द्र प्रसाद की सहायता से कृषकों की समस्याओं को उजागर किया और ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ संघर्ष किया। राजेन्द्र प्रसाद ने बिना फ़ीस के कृषकों का प्रतिनिधित्व किया और उनके दमन के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

निष्कर्ष

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जीवन एक प्रेरणा है जो हमें सिखाता है कि कैसे एक व्यक्ति अपने स्वार्थों को त्यागकर मातृभूमि के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभा सकता है। उनकी जीवन यात्रा और संघर्ष भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण कड़ी है और उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा।


उपसंहार

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की जीवनी हमें यह सिखाती है कि दृढ़ संकल्प, निष्ठा, और समर्पण से कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। उनकी प्रेरणादायक कहानी हमें अपने जीवन में भी देशभक्ति और उत्कृष्टता के प्रति प्रेरित करती है।

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