बाल गंगाधर तिलक की जीवनी: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी योद्धा
परिचय:
बाल गंगाधर तिलक (1856-1920) एक महान विद्वान, गणितज्ञ, दार्शनिक और उग्र राष्ट्रवादी थे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की नींव रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके जीवन और कार्यों ने भारतीय राजनीति और समाज पर गहरा प्रभाव डाला। 'लोकमान्य' के उपनाम से प्रसिद्ध तिलक ने स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी और भारतीय जनता को राजनीतिक और सामाजिक जागरूकता का महत्व समझाया।
जीवन परिचय:
बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई, 1856 को रत्नागिरी, महाराष्ट्र में हुआ। उनका पूरा नाम 'लोकमान्य श्री बाल गंगाधर तिलक' था। उनका परिवार एक सुसंस्कृत और मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार था। उनके पिता, श्री गंगाधर रामचंद्र तिलक, एक प्रसिद्ध शिक्षक और लेखक थे, जिन्होंने त्रिकोणमिति और व्याकरण पर किताबें लिखीं। पिता की मृत्यु के बाद, तिलक ने 16 वर्ष की उम्र में अनाथ हो जाने के बावजूद अपनी शिक्षा जारी रखी और अपने पिता की मृत्यु के चार महीने के भीतर मैट्रिक की परीक्षा पास की।
शिक्षा:
बाल गंगाधर तिलक ने 'डेक्कन कॉलेज' से बी.ए. ऑनर्स की परीक्षा पास की और फिर बंबई विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. की डिग्री प्राप्त की। कानून की पढ़ाई के दौरान उन्होंने 'आगरकर' से दोस्ती की और दोनों ने मिलकर देशवासियों की सेवा के लिए एक प्राइवेट हाईस्कूल और कॉलेज खोलने का संकल्प लिया।
सार्वजनिक सेवा:
तिलक ने अपना अधिकांश समय सार्वजनिक सेवा में लगाने का निर्णय लिया। लड़कियों की विवाह के लिए सहमति की आयु बढ़ाने के विधेयक में उनकी भागीदारी ने समाज सुधार के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाया। उन्होंने इस विधेयक के खिलाफ आवाज उठाई क्योंकि यह हिन्दू समाज में सरकारी हस्तक्षेप के रूप में देखा गया था।
समाचार पत्र का प्रकाशन:
तिलक ने राजनीतिक चेतना जगाने के लिए दो प्रमुख समाचार पत्रों, 'केसरी' (मराठी में) और 'द मराठा' (अंग्रेज़ी में) का प्रकाशन किया। इन समाचार पत्रों के माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश शासन और उदार राष्ट्रवादियों की आलोचना की। इसके कारण उन्हें मानहानि के मुक़दमे का सामना करना पड़ा और उन्हें कुछ समय के लिए जेल की सजा सुनाई गई।
स्वतंत्रता संग्राम और विचार:
तिलक के विचार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नरम दल से भिन्न थे। उन्होंने स्वराज की ओर संकेत किया, छोटे सुधारों को नहीं स्वीकार किया। सन् 1907 में कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में उनके संघर्ष और राजद्रोह के आरोपों ने उन्हें छह वर्ष के कारावास की सजा दिलाई। मांडले जेल में रहते हुए उन्होंने अपनी प्रसिद्ध कृति 'भगवद्गीता - रहस्य' लिखी, जिसमें उन्होंने भगवद्गीता के समाज सेवा पर आधारित सार को प्रस्तुत किया।
लेखक के रूप में:
तिलक ने वेदों की प्राचीनता पर आधारित एक निबंध लिखा और इसे 'दि ओरिऑन' के रूप में प्रकाशित किया। इस पुस्तक में उन्होंने वेदों की काल-निर्धारण के आधार पर उनकी प्राचीनता साबित की। उनकी इस कृति की यूरोपीय और अमेरिकी विद्वानों ने सराहना की और उनके निष्कर्षों को मान्यता दी।
मृत्यु:
1 अगस्त, 1920 को बंबई में तिलक की मृत्यु हो गई। उनके निधन पर महात्मा गांधी ने उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता और जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय क्रांति के जनक की उपाधि दी। उनका जीवन और कार्य आज भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रेरणास्त्रोत हैं।
निष्कर्ष:
बाल गंगाधर तिलक का जीवन और उनके कार्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमूल्य योगदान के रूप में स्थापित हैं। उनके विचार, लेखन और कार्यों ने भारतीय जनता को जागरूक किया और स्वतंत्रता के मार्ग पर अग्रसर किया। उनके योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता और वे भारतीय इतिहास में एक अद्वितीय स्थान रखते हैं।
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