बिरसा मुंडा और उनका ‘उलगुलान’: आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम का गहरा चित्रण
महाश्वेता देवी, भारतीय साहित्य की प्रमुख लेखिका, ने अपने कामों में आदिवासी और वंचित समुदायों के जीवन और संघर्ष को गहराई से उकेरा है। उनके उपन्यास "चोट्टि मुंडा और उसका तीर" ने आदिवासी जीवन की जटिलताओं और उनके नायक बिरसा मुंडा के संघर्ष को शानदार ढंग से पेश किया है। यह उपन्यास आदिवासी समाज की आजादी के लिए किए गए संघर्ष को अत्यंत प्रभावशाली तरीके से चित्रित करता है। बिरसा मुंडा, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले महानायकों में से एक थे, की कहानी को महाश्वेता देवी ने अपने साहित्य में जीवंत किया है।

आदिवासी जीवन और ‘उलगुलान’
झारखंड में अंग्रेजों के आगमन से पहले आदिवासियों का अपना राज था, लेकिन अंग्रेजी शासन लागू होने के बाद उनकी स्वतंत्रता और स्वायत्ता पर खतरा मंडराने लगा। आदिवासी समुदाय, जो वर्षों से जल, जंगल और जमीन के सहारे जीवन यापन कर रहे थे, अब अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करने लगे। आदिवासी समाज अपनी स्वतंत्रता और अधिकारों के प्रति अत्यंत संवेदनशील था, और इसीलिए उसने अपनी आजादी को बचाने के लिए लम्बे समय तक संघर्ष किया।
इस संघर्ष का नेतृत्व बिरसा मुंडा ने किया, जिन्होंने ‘उलगुलान’ (आंदोलन) का ऐलान किया। उनका नारा "अंग्रेजों, अपने देश वापस जाओ" ने आदिवासी समाज में एक नई ऊर्जा का संचार किया। बिरसा मुंडा ने जल, जंगल, जमीन की रक्षा, नारी की सुरक्षा और आदिवासी संस्कृति की मर्यादा बनाए रखने के लिए तीन मुख्य लक्ष्यों के साथ उलगुलान का नेतृत्व किया।
अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष
1897 से 1900 के बीच, बिरसा मुंडा और उनके अनुयायी अंग्रेजी सेनाओं के खिलाफ कई युद्धों में शामिल हुए। 1897 में, बिरसा और उनके चार सौ साथी ने तीर और कमान से सुसज्जित होकर खूंटी थाने पर हमला किया। 1898 में तांगा नदी के किनारे अंग्रेजी सेना को पराजित किया। जनवरी 1900 में, डोमबाड़ी पहाड़ी पर एक संघर्ष में कई आदिवासी मारे गए। इस संघर्ष के दौरान बिरसा ने अपनी जनसभा को संबोधित किया, जो अंग्रेजी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई थी।
अंग्रेजी सरकार ने बिरसा को घेरने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन सभी प्रयास असफल रहे। 4 फरवरी 1900 को, सात मुंडाओं ने 500 रुपये के लालच में बिरसा को गिरफ्तार कर अंग्रेजों के हवाले कर दिया। अदालत में झूठे आरोपों के तहत बिरसा को सजा दी गई और जेल में धीमा जहर देकर उनकी मृत्यु कर दी गई।
बिरसा मुंडा का जीवन और उनके योगदान
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को बिहार के उलीहातू गांव में हुआ था। उन्होंने हिंदू और ईसाई धर्म दोनों की शिक्षा ली और मात्र 25 साल की उम्र में आदिवासियों के सामाजिक और आर्थिक शोषण को पहचान लिया। अपने छोटे से जीवन में, बिरसा ने आदिवासियों को एकत्रित कर उनके संघर्ष को संगठित किया और स्वतंत्रता के लिए आवाज उठाई। उन्होंने मुंडा परंपरा और सामाजिक संरचना को नया जीवन दिया और आदिवासी समाज की सुरक्षा के लिए संघर्ष किया।
बिरसा मुंडा का प्रभाव और आदिवासी साहित्य
बिरसा मुंडा की प्रेरणा ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अन्य नायकों, जैसे महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह, को भी प्रभावित किया। उनका "उलगुलान" आदिवासी समाज के संघर्ष का प्रतीक बन गया और आज भी झारखंड के लोग उनकी बेड़ियों वाली प्रतिमाओं और तस्वीरों को प्रेरणा का स्रोत मानते हैं। आदिवासी साहित्य में बिरसा मुंडा और उनके संघर्ष की ध्वनि आज भी गूंजती है, जो उनके बलिदान और आदिवासी समाज के संघर्ष को जीवित रखती है।
महाश्वेता देवी के उपन्यास "चोट्टि मुंडा और उसका तीर" के माध्यम से, बिरसा मुंडा की प्रेरणादायक कहानी को समकालीन पाठकों तक पहुंचाना उनके संघर्ष और साहस की कहानी को एक नई पहचान प्रदान करता है। यह उपन्यास आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम की जड़ों को समझने और उनके महानायक की भूमिका को सही तरीके से उजागर करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
सवाल और उत्तर:
सवाल: बिरसा मुंडा कौन थे और उनका महत्व क्या है?
- उत्तर: बिरसा मुंडा एक प्रमुख आदिवासी नेता और स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने 19वीं सदी के अंत में झारखंड क्षेत्र में ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया। वे आदिवासियों की आजादी और अधिकारों के लिए लड़े और उलगुलान आंदोलन की अगुवाई की। उनके नेतृत्व में आदिवासियों ने जल, जंगल, और जमीन के अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष किया। उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण है और उन्हें आदिवासी समुदाय का नायक माना जाता है।
सवाल: 'चोट्टि मुंडा और उसका तीर' उपन्यास के बारे में बताएं।
- उत्तर: 'चोट्टि मुंडा और उसका तीर' महाश्वेता देवी का एक प्रसिद्ध उपन्यास है जो आदिवासी जीवन और बिरसा मुंडा के संघर्ष को केंद्रित करता है। यह उपन्यास आदिवासियों की आजादी के संघर्ष और उनके संघर्ष की गहराई को उजागर करता है, विशेषकर बिरसा मुंडा के नेतृत्व में हुए उलगुलान आंदोलन की कहानी को बताता है।
सवाल: उलगुलान आंदोलन क्या था और इसका महत्व क्यों है?
- उत्तर: उलगुलान, जिसका अर्थ है 'विद्रोह' या 'क्रांति', आदिवासियों द्वारा ब्रिटिश शासन के खिलाफ चलाया गया एक प्रमुख आंदोलन था। बिरसा मुंडा ने इस आंदोलन की अगुवाई की, जो जल, जंगल, और जमीन के अधिकारों की रक्षा और आदिवासी संस्कृति की सुरक्षा के लिए था। यह आंदोलन आदिवासियों की स्वायत्तता और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए किया गया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा।
सवाल: महाश्वेता देवी ने आदिवासी समाज को किस तरह से चित्रित किया है?
- उत्तर: महाश्वेता देवी ने अपने साहित्य में आदिवासी समाज की वास्तविकताओं और संघर्षों को गहराई से चित्रित किया है। उन्होंने आदिवासी जीवन की कठिनाइयों, उनके अधिकारों के लिए किए गए संघर्ष, और उनके सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश को अपनी कहानियों में प्रमुखता दी है। 'चोट्टि मुंडा और उसका तीर' में उन्होंने बिरसा मुंडा के नेतृत्व में आदिवासियों के संघर्ष को विशेष रूप से उजागर किया है।
सवाल: बिरसा मुंडा का जीवन कितना प्रेरणादायक है?
- उत्तर: बिरसा मुंडा का जीवन अत्यधिक प्रेरणादायक है क्योंकि उन्होंने सीमित संसाधनों और कठिन परिस्थितियों के बावजूद अपने समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए अद्वितीय संघर्ष किया। उनके नेतृत्व में आदिवासियों ने अपनी स्वतंत्रता और स्वायत्तता के लिए एक निर्णायक लड़ाई लड़ी। उनका जीवन न केवल आदिवासी समाज के लिए बल्कि समग्र स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक महत्वपूर्ण प्रेरणा का स्रोत है।
सवाल: बिरसा मुंडा की मृत्यु कैसे हुई और इसका आदिवासी समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
- उत्तर: बिरसा मुंडा की मृत्यु 9 जून 1900 को जेल में हुई, जहां उन्हें धीमे जहर से मारा गया। उनकी मृत्यु ने आदिवासी समाज में गहरा दुख और आक्रोश फैलाया। हालांकि उनकी मृत्यु के बाद भी उनके विचार और संघर्ष आदिवासी समाज में प्रेरणा का स्रोत बने रहे और उनकी विरासत आज भी जीवित है।
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