वीर सावरकर का संघर्ष और बलिदान - Struggle and sacrifice of Veer Savarkar

वीर सावरकर: भारत की स्वतंत्रता के महान क्रांतिकारी और समाज सुधारक

भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में वीर सावरकर का नाम अमर है। वह न केवल एक महान क्रांतिकारी थे, बल्कि एक अद्वितीय कवि, समाज सुधारक, और राष्ट्रवादी नेता भी थे। वह पहले ऐसे कवि थे जिन्होंने जेल की दीवारों पर पत्थर के टुकड़ों से कविताएँ लिखीं। उनके योगदान ने स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी और भारतीयों को अपने देश की आजादी के लिए प्रेरित किया। वीर सावरकर का जीवन प्रेरणादायक है और उनके संघर्ष और सिद्धांत आज भी हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं।

जन्म और प्रारंभिक जीवन

वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भगूर गाँव में हुआ था। उनका पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था। उनके पिता दामोदरपंत गाँव के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से थे। जब वह नौ साल के थे, उनकी माता राधाबाई का देहांत हो गया। सावरकर बचपन से ही एक प्रखर बुद्धिजीवी और राष्ट्रभक्त थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा शिवाजी हाईस्कूल, नासिक से पूरी की और बाद में पुणे के फ़र्ग्युसन कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की। वह बचपन से ही कविताएँ लिखते थे और राष्ट्रभक्ति से भरे हुए ओजस्वी भाषण देते थे।

क्रांतिकारी विचार और संगठन

वीर सावरकर ने 1940 में ‘अभिनव भारती’ नामक एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य आवश्यकता पड़ने पर बल-प्रयोग के द्वारा स्वतंत्रता प्राप्त करना था। सावरकर की क्रांतिकारी सोच ने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण नेता बना दिया। उन्होंने ‘मित्र मेला’ नामक एक गुप्त सोसायटी बनाई, जो देश के युवाओं को आजादी की लड़ाई में शामिल करने के लिए प्रेरित करती थी।

सावरकर का जेल जीवन

वीर सावरकर का जीवन संघर्षों से भरा रहा। 1910 में उन्हें ब्रिटिश सरकार ने एक हत्या के मामले में सहयोग देने के आरोप में गिरफ्तार किया। उन्हें अंडमान और निकोबार द्वीप स्थित कुख्यात सेल्यूलर जेल (काला पानी) में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। यहाँ उन्होंने 1911 से 1921 तक कारावास की कठिनाइयों का सामना किया। सावरकर ने जेल की दीवारों पर पत्थर के टुकड़ों से कविताएँ लिखीं और अपने विचारों को प्राचीन वैदिक साधना के अनुरूप स्मृति में सुरक्षित रखा। उनकी दस हजार से अधिक पंक्तियों को वर्षों तक स्मरण में सुरक्षित रखा गया, जब तक कि वह किसी न किसी रूप में जनता तक नहीं पहुँच गईं।

सावरकर के प्रमुख कार्य

वीर सावरकर का जीवन देश की आजादी और सामाजिक सुधारों के लिए समर्पित था। उनके कुछ प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं:

  1. ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लंदन में क्रांतिकारी आंदोलन की शुरुआत: वीर सावरकर भारत के पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने लंदन में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ क्रांतिकारी आंदोलन की नींव रखी।
  2. स्वदेशी आंदोलन में भूमिका: उन्होंने 1906 में स्वदेशी का नारा देकर विदेशी वस्त्रों की होली जलाई, जो देश में स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत थी।
  3. ‘1857 का स्वाधीनता संग्राम’: उन्होंने 1857 की लड़ाई को भारत का पहला स्वाधीनता संग्राम घोषित किया और इस पर एक हजार पृष्ठों का इतिहास लिखा, जिसे ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया।
  4. सामाजिक सुधारक: सावरकर ने समाज में छुआछूत और जातिगत भेदभाव को समाप्त करने के लिए कई कार्य किए। वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने एक अछूत को मंदिर का पुजारी बनाया।
  5. हिंदुत्व का प्रचार: सावरकर हिंदुत्व के समर्थक थे और उन्होंने ‘हिंदुत्व’ पर एक महत्वपूर्ण शोध ग्रंथ भी लिखा। वह जीवन भर हिंदू, हिंदी, और हिंदुस्तान के लिए कार्यरत रहे।

सावरकर की रचनाएँ

सावरकर एक महान लेखक भी थे। उन्होंने अपने जेल के अनुभवों पर आधारित ‘मेरा आजीवन कारावास’, ‘अंडमान की प्रतिध्वनियाँ’, और ‘भारतीय स्वातंत्र्य युद्ध’ जैसी पुस्तकें लिखीं। 1909 में उन्होंने ‘द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस-1857’ नामक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने 1857 के संग्राम को आजादी की पहली लड़ाई बताया।

मृत्यु और सम्मान

वीर सावरकर का निधन 26 फरवरी 1966 को मुंबई में हुआ। भारत सरकार ने उनके सम्मान में 1966 में एक डाक टिकट जारी किया। उनके नाम पर पोर्ट ब्लेयर के हवाई अड्डे का नाम ‘वीर सावरकर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा’ रखा गया। सावरकर का योगदान राष्ट्र के प्रति अविस्मरणीय है, और उनका जीवन हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है।

निष्कर्ष

वीर सावरकर न केवल भारत के महान क्रांतिकारी थे, बल्कि वह एक सामाजिक सुधारक, लेखक, और कवि भी थे। उनके संघर्ष, उनकी सोच, और उनके कार्यों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। उनका जीवन देशभक्ति और सामाजिक उत्थान के प्रति समर्पण का प्रतीक है। वीर सावरकर के विचार और उनकी रचनाएँ आज भी हमें प्रेरित करती हैं, और उनकी यादें सदैव हमारे दिलों में जीवित रहेंगी।

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