चित्तरंजन दास: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक
चित्तरंजन दास, जिन्हें प्रेमपूर्वक 'देशबंधु' कहा जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान नेता, समाज सुधारक और कुशल वकील थे। उन्होंने अपने जीवन को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए समर्पित किया और भारतीय समाज में व्याप्त सामाजिक असमानताओं के खिलाफ संघर्ष किया।
जीवन परिचय
चित्तरंजन दास का जन्म 5 नवंबर 1870 को कोलकाता में हुआ था। वे तेलीरबाग, ढाका जिले के एक उच्च-मध्यवर्गीय वैद्य परिवार से थे। उनके पिता, भुबन मोहन दास, कोलकाता उच्च न्यायालय के जाने-माने वकील थे और ब्रह्म समाज के समर्थक थे। चित्तरंजन दास अपनी तीव्र बुद्धि और सामाजिक दृष्टिकोण के लिए प्रसिद्ध थे।
प्रारंभिक जीवन और वकालत
चित्तरंजन दास ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता में प्राप्त की। विधि की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे कोलकाता उच्च न्यायालय में वकील बने। उनकी प्रसिद्धि तब बढ़ी जब उन्होंने 1908 में अलीपुर षड्यंत्र कांड में अरविंद घोष की पैरवी की और उन्हें बरी कराने में सफलता पाई।
राजनीतिक जीवन
चित्तरंजन दास ने गांधीजी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए अपनी चलती हुई वकालत छोड़ दी। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सिद्धांतों का प्रचार करते हुए पूरे देश में भ्रमण करने लगे।
महत्वपूर्ण योगदान:
- 1921 में कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन के अध्यक्ष बने।
- 1922 में असहयोग आंदोलन के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष नियुक्त हुए।
- स्वराज्य पार्टी की स्थापना (मोतीलाल नेहरू और एन.सी. केलकर के साथ)।
- 1923 और 1924 में अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस के अध्यक्ष बने।
समाज सुधार कार्य
चित्तरंजन दास ने अपनी संपत्ति और जीवन को समाज सेवा और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित कर दिया। वे हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे। कोलकाता के मेयर रहते हुए उन्होंने यूरोपीय नियंत्रण को समाप्त कर भारतीय नागरिकों के हितों की रक्षा की।
असहयोग आंदोलन और स्वराज्य पार्टी
असहयोग आंदोलन के दौरान उन्होंने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि मानते हुए संवैधानिक सुधारों के लिए 'स्वराज्य पार्टी' की स्थापना की। यह पार्टी तत्कालीन विधानसभाओं में भारतीयों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने में अग्रणी रही।
निधन और प्रभाव
अत्यधिक परिश्रम और जेल जीवन की कठिनाइयों के कारण चित्तरंजन दास का स्वास्थ्य बिगड़ गया और 16 जून 1925 को दार्जिलिंग में उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को गहरा आघात लगा।
चित्तरंजन दास की विरासत
- समाज सुधार और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा।
- 'देशबंधु' का यह शीर्षक उनके देशभक्ति और बलिदान को सम्मानित करता है।
- स्वराज्य पार्टी के रूप में उनकी राजनीतिक रणनीति आज भी प्रेरणा देती है।
निष्कर्ष
चित्तरंजन दास भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे नेता थे, जिन्होंने न केवल राजनीति में बल्कि समाज सुधार और न्याय व्यवस्था में भी अमूल्य योगदान दिया। उनका जीवन और विचार भारतीय इतिहास के सुनहरे पृष्ठों में सदा अमर रहेंगे।
चित्तरंजन दास पर FAQs (Frequently Asked Questions)
Q1. चित्तरंजन दास को 'देशबंधु' क्यों कहा जाता है?
Ans: चित्तरंजन दास को उनके राष्ट्रप्रेम, समाज सुधार और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अद्वितीय योगदान के लिए 'देशबंधु' (देश के मित्र) कहा जाता था।
Q2. चित्तरंजन दास का जन्म और मृत्यु कब हुआ?
Ans: उनका जन्म 5 नवंबर 1870 को कोलकाता में हुआ और उनका निधन 16 जून 1925 को दार्जिलिंग में हुआ।
Q3. चित्तरंजन दास ने किस प्रसिद्ध मुकदमे में अरविंद घोष का बचाव किया था?
Ans: उन्होंने 1908 के अलीपुर षड्यंत्र कांड में अरविंद घोष का बचाव किया और उन्हें बरी करवाया।
Q4. चित्तरंजन दास ने कौन-सी राजनीतिक पार्टी की स्थापना की थी?
Ans: उन्होंने मोतीलाल नेहरू और एन.सी. केलकर के साथ मिलकर 1922 में स्वराज्य पार्टी की स्थापना की।
Q5. चित्तरंजन दास का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्या योगदान था?
Ans: उन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लिया, अपनी वकालत छोड़ दी, कांग्रेस के अधिवेशन की अध्यक्षता की, और स्वराज्य पार्टी के माध्यम से संवैधानिक सुधारों के लिए संघर्ष किया।
Q6. चित्तरंजन दास ने समाज सुधार के लिए क्या किया?
Ans: उन्होंने अपनी संपत्ति और जीवन समाज सेवा को समर्पित किया, हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए प्रयास किए, और कोलकाता नगर निगम को यूरोपीय नियंत्रण से मुक्त किया।
Q7. चित्तरंजन दास की मृत्यु का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर क्या प्रभाव पड़ा?
Ans: उनकी मृत्यु से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को गहरा झटका लगा। उनके निधन के बाद ब्रिटिश सरकार से बातचीत और सुधारों का अवसर खो गया।
Q8. चित्तरंजन दास ने कौन-कौन से राष्ट्रीय अधिवेशन की अध्यक्षता की?
Ans: उन्होंने 1921 में अहमदाबाद में कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता की और 1923 में लाहौर तथा 1924 में अहमदाबाद में 'अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस' की अध्यक्षता की।
Q9. चित्तरंजन दास के पिता कौन थे?
Ans: उनके पिता भुबन मोहन दास, कोलकाता उच्च न्यायालय के जाने-माने वकील और ब्रह्म समाज के समर्थक थे।
Q10. रवींद्रनाथ टैगोर ने चित्तरंजन दास को श्रद्धांजलि में क्या कहा था?
Ans: टैगोर ने कहा:
"एनेछिले साथे करे मृत्युहीन प्रान।
मरने ताहाय तुमी करे गेले दान।।"
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