Part 4, The Path to Success: Lessons on Patience, Decisions, and Strength

जब भी तुम्हे लगे कि सब कुछ ख़तम हो गया, अब कोई भी #Option नहीं बचा, तो याद रखना कि ये वही पल है जहाँ तुम्हारी ज़िंदगी एक नया मोड़ लेने वाली है।

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ये 3 बातें हमेशा याद रखे। 👇🙏

  1. कभी भी गुस्से में जवाब ना दें।
    हम बड़ी आसानी से कह देते हैं, "अरे गुस्से में था तो बोल दिया।" मैं उम्मीद नहीं करता, पर आप की बात सामने वाले को कितनी तकलीफ देगी, यह हम नहीं देख पाते हैं।

  2. खुशी में किसी से कोई वादा ना करें।
    कहते हैं, "किसी भी चीज़ की अति हानिकारक होती है।" जैसे हम गुस्से में गलतियां कर देते हैं, वैसे ही ज्यादा खुशी भी हमसे गलतियां करवा सकती है।

  3. दुःख में कोई फैसला ना लें।
    जब आपका दिमाग संतुलित ना हो, तब तक कोई फैसला नहीं लेना चाहिए। जैसे ज्यादा खुशी में लिया गया फैसला हानिकारक हो सकता है, वैसे ही दुख में लिया गया फैसला आपको और ज्यादा दुखी कर सकता है।

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Be a good Person – व्यक्ति की अच्छाई एक ऐसी ज्वाला है, जो छुप तो सकती है, पर कभी बुझ नहीं सकती।

  1. सफल व्यक्तियों की प्रेरणा लीजिये।
  2. दृढ़ निश्चय रखिये।
  3. सीखने का हुनर रखिए।
  4. कार्य के प्रति सम्मान होनी चाहिए।
  5. सही वक्त का इंतजार और इस्तेमाल करें।
  6. अच्छा व्यवहार रखिए।
  7. लालच से दूरी बनाइए।
  8. सकारात्मक विचार रखिए।
  9. एक समय में एक कार्य करें।
  10. कठिन परिश्रम कीजिए।
  11. निरंतर प्रयासरत रहिए।

अच्छे लोगों के मन में जो बात होती है, वे वही बोलते हैं और जो बोलते हैं, वही करते हैं... सज्जन पुरुषों के मन, वचन और कर्म में एकरूपता होती है। इसलिए आप हमेशा अच्छे लोगों के कर्मों और विचारों से जुड़े रहें।

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कुछ रास्तों पर आपको अकेले ही चलना पड़ता है।
ना कोई परिवार, ना कोई दोस्त और ना कोई साथी, बस आप और आपकी हिम्मत ही काम आती है।

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जीवन में कभी आपको किसी चीज़ से डर लगे, तो उसे कभी अपने ऊपर हावी मत होने दो।
बल्कि उस पर हमला करके उसे खत्म कर दो।

यह बात दिमाग में बैठा लो, "जिंदा हो तो निंदा भी होगी, क्योंकि तारीफें तो मरने के बाद हुआ करती हैं।"


छोटी कहानी : सीख बड़ी

पिज्जा के आठ टुकड़े

यह कहानी आठ साल पुरानी है, लेकिन इसकी सशक्त शिक्षा आज भी उतनी ही प्रभावी है।

एक दिन मेरी पत्नी ने मुझसे कहा, "आज धोने के लिए ज्यादा कपड़े मत निकालना।"

"ऐसा क्यों?" मैंने पूछा।

"काम वाली बाई दो दिन नहीं आएगी।"

"वो क्यों?" मैंने फिर से पूछा।

"वह कह रही थी कि गणपति के लिए अपने नाती से मिलने बेटी के यहाँ जा रही है।"

"ठीक है, मैं ज्यादा कपड़े नहीं निकालूंगा," मैंने पत्नी को आश्वस्त किया।

तभी पत्नी ने मुझसे पूछा, "और हाँ! गणपति के लिए पाँच सौ रूपए दे दूँ उसे? त्यौहार का बोनस.."

मैंने हैरान होकर कहा, "क्यों? अभी दिवाली आ ही रही है, तब दे देंगे न?"

"अरे नहीं बाबा! गरीब है बेचारी, बेटी-नाती के यहाँ जा रही है, कुछ अतिरिक्त पैसे साथ में होंगे तो उसे भी अच्छा लगेगा। इस महंगाई के दौर में अपनी पगार से त्यौहार कैसे मनाएगी बेचारी?"

मैंने उसे समझाने की कोशिश की, "तुम भी ना, जरूरत से ज्यादा भावुक हो जाती हो…"

"अरे नहीं, चिंता मत करो, मैं आज का पिज्जा खाने का कार्यक्रम रद्द कर देती हूँ… खामख्वाह पाँच सौ रूपए उड़ जाएँगे, बासी पाव के उन आठ टुकड़ों के पीछे…"

मैंने मजाक में कहा, "वाह, क्या कहने! हमारे मुँह से पिज्जा छीनकर बाई की थाली में?"

तीन दिन बाद, पोंछा लगाती हुई कामवाली बाई से मैंने पूछा, "क्या बाई, कैसी रही छुट्टी?"

"बहुत बढ़िया रही साहब! दीदी ने पाँच सौ रूपए दिए थे ना त्यौहार का बोनस, इसलिए सब कुछ बहुत अच्छे से हो गया।"

"तो जाकर हो आयी बेटी के यहाँ से? मिल ली अपने नाती से…?"

"हाँ साब, मिल लिया, बहुत मजा आया। मैंने दो दिन में ही 500 रूपए खर्च कर दिए।"

"अच्छा! मतलब क्या किया 500 रूपए का?"

"नाती के लिए 150 रूपए की शर्ट, 40 रूपए की गुड़िया, बेटी के लिए 50 रूपए के पेड़े, 50 रूपए के पेड़े मंदिर में प्रसाद चढ़ाया, 60 रूपए किराए के लग गए, 25 रूपए की चूड़ियाँ बेटी के लिए और जमाई के लिए 50 रूपए का बेल्ट लिया। बहुत अच्छा सा… बचे हुए 75 रूपए नाती को दे दिए कॉपी-पेन्सिल खरीदने के लिए।" झाड़ू-पोंछा करते हुए वह सब हिसाब बताते हुए बोली।

सुनकर मैं अवाक रह गया और सोचने लगा, सिर्फ 500 रूपए में उसने कितना कुछ कर लिया? मेरी आँखों के सामने वह आठ टुकड़े किया हुआ बड़ा सा पिज्जा घूमने लगा। एक-एक टुकड़ा मेरे दिमाग में हथौड़ा मारने लगा। मैं अपने एक पिज्जा के खर्च की तुलना कामवाली बाई के त्यौहारी खर्च से करने लगा।

मेरे लिए यह सोचने का मौका था कि क्या मैं अपनी खुशियाँ दूसरों के खुशियों से तुलना करता हूँ? या फिर हर पैसे की कीमत समझता हूँ?

मेरे हिसाब से, पिज्जे का पहला टुकड़ा था बच्चे की ड्रेस का, दूसरा टुकड़ा पेड़ों का, तीसरा टुकड़ा मंदिर का प्रसाद, चौथा किराए का, पाँचवाँ गुड़िया का, छठवाँ टुकड़ा बेटी की चूड़ियों का, सातवाँ जमाई के बेल्ट का, और आठवाँ टुकड़ा बच्चे की कॉपी-पेन्सिल का।

आज तक मैंने हमेशा पिज्जा के एक ही पक्ष को देखा था, लेकिन आज कामवाली बाई ने मुझे पिज्जा के दूसरी तरफ का दृश्य दिखाया था। पिज्जा के आठ टुकड़ों ने मुझे जीवन के कई महत्वपूर्ण पहलुओं को समझाया। "जीवन के लिए खर्च" और "खर्च के लिए जीवन" का अर्थ इस एक घटना से मैं पूरी तरह समझ गया।

यह छोटी सी कहानी बड़ी शिक्षा दे गई: जब हम जीवन में खर्च करते हैं, तो क्या हम उसकी सच्ची उपयोगिता को समझते हैं, या फिर सिर्फ अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए खर्च करते हैं?

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