🗓 03 नवंबर - प्रथम परमवीर चक्र विजेता 'मेजर सोमनाथ शर्मा' की पुण्यतिथि

भारत के वीर सपूतों में से एक, मेजर सोमनाथ शर्मा का नाम भारतीय सेना के इतिहास में साहस, निष्ठा, और बलिदान के प्रतीक के रूप में अमर है। हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला जिले के डाढ गाँव में 31 जनवरी 1923 को जन्मे सोमनाथ, मेजर जनरल अमरनाथ शर्मा के पुत्र थे। एक सैनिक परिवार में जन्म लेने के कारण, उनके मन में बचपन से ही देशभक्ति और वीरता का जज्बा था।
शिक्षा और सैन्य जीवन की शुरुआत
मेजर सोमनाथ शर्मा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल से प्राप्त की और बाद में देहरादून स्थित प्रिंस ऑफ वेल्स रॉयल इंडियन मिलिट्री कॉलेज में सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त किया। 22 फरवरी 1942 को उन्हें कुमाऊँ रेजिमेंट की चौथी बटालियन में सेकंड लेफ्टिनेंट के रूप में नियुक्त किया गया और बर्मा में युद्ध के दौरान उन्होंने अपने साहसपूर्ण नेतृत्व का परिचय दिया, जिसने उन्हें भारतीय सेना में एक नायक बना दिया।
कश्मीर में पाकिस्तानी आक्रमण और मेजर सोमनाथ का अद्वितीय साहस
स्वतंत्रता के बाद, जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरिसिंह विलय के निर्णय को लेकर अनिर्णय की स्थिति में थे। इस स्थिति का लाभ उठाकर पाकिस्तान ने कबाइलियों के वेश में अपने सैनिकों को कश्मीर में भेज दिया। बढ़ते खतरे को देखकर, महाराजा हरिसिंह ने भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए, जिसके बाद भारतीय सेना ने मोर्चा संभाला।
मेजर सोमनाथ की टुकड़ी को श्रीनगर के निकट बड़गाम हवाई अड्डे की सुरक्षा का दायित्व सौंपा गया। यहाँ पर केवल 100 भारतीय सैनिकों के साथ उन्हें 700 से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों का सामना करना था। उन्होंने ब्रिगेड मुख्यालय को संदेश भेजा: “जब तक मेरे शरीर में एक भी बूंद खून और एक भी जवान शेष है, हम लड़ते रहेंगे।” उनके इस दृढ़ संकल्प और साहस ने सभी जवानों का मनोबल बढ़ाया।
अंतिम युद्ध और अदम्य शौर्य
3 नवंबर 1947 का दिन, जब भीषण गोलीबारी के बीच एक हथगोला उनके पास गिरा और वे गंभीर रूप से घायल हो गए। अपने अंतिम क्षणों में भी उन्होंने अपने सैनिकों से कहा, “मेरी चिंता मत करो, हवाई अड्डे की रक्षा करो। दुश्मनों को आगे नहीं बढ़ने देना है।” उनके इस बलिदान ने उनके सैनिकों को प्रेरित किया, और वे दुश्मनों को पीछे हटाने में सफल रहे। यदि उस दिन बड़गाम हवाई अड्डा हाथ से चला जाता, तो कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में हो सकता था।
परमवीर चक्र से सम्मानित
मेजर सोमनाथ शर्मा को उनके अद्वितीय साहस और बलिदान के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया, जिससे वे इस सर्वोच्च वीरता पुरस्कार के पहले विजेता बने। उनके छोटे भाई, जनरल विश्वनाथ शर्मा, भी बाद में भारतीय सेना के सेनाध्यक्ष बने।
मेजर सोमनाथ का जीवन और बलिदान: प्रेरणा का स्रोत
मेजर सोमनाथ शर्मा का जीवन और उनका सर्वोच्च बलिदान भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनका योगदान न केवल भारतीय सेना बल्कि समस्त भारतवर्ष के लिए गर्व का विषय है। वे हमें सिखाते हैं कि मातृभूमि की रक्षा में किया गया त्याग सच्ची देशभक्ति का प्रतीक है। उनकी पुण्यतिथि पर हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनके साहस और बलिदान को सलाम करते हैं।
जय हिंद!
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